जो बीत गयी सो बात गयी
जीवन में एक सितारा था
माना वो बेहद प्यारा था
वो डूब गया तो डूब गया
अम्बर के आंगन को देखो
कितने इसके तारे टूटे
कितने इसके प्यारे छूटे
जो छूट गए फिर कहॉ मिले
पर बोलो टूटे तारों पर
कब अम्बर शोक मनाता है
जो बीत गयी सो बात गयी
जीवन में था वो एक कुसुम
थे उसपे नित्य न्योछावर तुम
वो सूख गया तो सूख गया
मधुबन की छाती को देखो
सूखी कितनी उसकी कलियां
मुरझायी कितनी वलेर्रिया
जो मुरझायी फिर कहॉ खिलीं
पर बोलो सूखे फूलों पे
कब मधुबन शोर मनाता हैं
जो बीत गयी सो बात गयी
जीवन में मधु का प्याला था
तुमने तन मन दे डाला था
वो टूट गया तो टूट गया
मदिरालय का आंगन देखो
कितने प्याले हिल जाते हें
गिर मिट्टी में मिल जाते हें
जो गिरते हें कब उठते हें
पर बोलो टूटे प्यालों में
कब मदिरालय पछताता हैं
जो बीत गयी सो बात गयी
मृदु मिट्टी के हैं बने हुए
मधु घट फूटा ही करते हैं
लघु जीवन लेकर आये हैं
प्याले टूटा ही करते हैं
फिर भी मदिरालय के अन्दर
मधु के घट हैं मधु प्याले हैं
जो मादकता के मारे हैं
वो मधु लूटा ही करते हैं
वो कच्चा पीने वाला हैं
जिसकी ममता घट प्यालों पर
जो सच्चे मधु से जला हुआ
कब रोता हैं चिल्लाता हैं
जो बीत गयी सो बात गयी
a beautiful poem written by shri harivanshrai bacchan.. read it first as part of hindi syllabus in middle school.. couldn't make much sense of it then.. came to my head all out of a blue today and so felt like putting it here.. to be very honest, still can't make much sense of it other than literally :)
माना वो बेहद प्यारा था
वो डूब गया तो डूब गया
अम्बर के आंगन को देखो
कितने इसके तारे टूटे
कितने इसके प्यारे छूटे
जो छूट गए फिर कहॉ मिले
पर बोलो टूटे तारों पर
कब अम्बर शोक मनाता है
जो बीत गयी सो बात गयी
जीवन में था वो एक कुसुम
थे उसपे नित्य न्योछावर तुम
वो सूख गया तो सूख गया
मधुबन की छाती को देखो
सूखी कितनी उसकी कलियां
मुरझायी कितनी वलेर्रिया
जो मुरझायी फिर कहॉ खिलीं
पर बोलो सूखे फूलों पे
कब मधुबन शोर मनाता हैं
जो बीत गयी सो बात गयी
जीवन में मधु का प्याला था
तुमने तन मन दे डाला था
वो टूट गया तो टूट गया
मदिरालय का आंगन देखो
कितने प्याले हिल जाते हें
गिर मिट्टी में मिल जाते हें
जो गिरते हें कब उठते हें
पर बोलो टूटे प्यालों में
कब मदिरालय पछताता हैं
जो बीत गयी सो बात गयी
मृदु मिट्टी के हैं बने हुए
मधु घट फूटा ही करते हैं
लघु जीवन लेकर आये हैं
प्याले टूटा ही करते हैं
फिर भी मदिरालय के अन्दर
मधु के घट हैं मधु प्याले हैं
जो मादकता के मारे हैं
वो मधु लूटा ही करते हैं
वो कच्चा पीने वाला हैं
जिसकी ममता घट प्यालों पर
जो सच्चे मधु से जला हुआ
कब रोता हैं चिल्लाता हैं
जो बीत गयी सो बात गयी
a beautiful poem written by shri harivanshrai bacchan.. read it first as part of hindi syllabus in middle school.. couldn't make much sense of it then.. came to my head all out of a blue today and so felt like putting it here.. to be very honest, still can't make much sense of it other than literally :)
3 Comments:
poori yaad thi :) badhiya. hindi mein kitte aaye the :P
abe paagal ho gaye ho kya.. kahin se dekh dekh ke likhi hai.. kaafi kam yaad thi.. vaise 10th hindi main 88 aaye teh :)
mere 82 the in all 5 subjects :) pankaj
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